Bhojpuri: का रउआ बता सकीं ना आम के अउर का कहल जाला? पढ़ब त इयाद आ जाई बचपना!

आम चाहें कांच होखे भा पाकल, हर अवस्था में अपना ओरि लोगन के लुभा लेला. अगर अइसन ना रहित त राहि चलत-चलत अमराई में टिकोढ़ा लटकल देखि अचानके ओह पर ढेला भा झटहां ना फेंका जाइ. सायदे कवनो गांव होई, जहवां बगइचन के बाढ़ि के दिनन में भी पुलुई पर एगो पाकल आम देखि के चढ़े वाला वीर बालक ना होइहें.
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