कभी ट्राइसाइकिल से घर-घर ट्यूशन पढ़ाने जाते थे चुन्नु, अब खोल दिया स्कूल

चुन्नू मिश्रा ने बताया कि मैं दोनों पैर से दिव्यांग तो जरूर हूं. लेकिन अपने हिम्मत और जज्बे से दिव्यांग नहीं हूं. उन्होंने कहा कि मैंने अपने पिता के संघर्ष को देखा है. जो सबसे बड़ा मेरे लिए प्रेरणा का स्रोत है. चून्नु बताते हैं कि उनका सपना था कि वह एक स्कूल खोले और इस सपने को उन्होंने पूरा कर लिया.


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